ए आर आज़ाद
आचार्य फ़ज़लुर रहमान हाशमी मैथिली साहित्य के प्रथम मुस्लिम कवि के रूप में जनमानस के हृदय में स्थान बनाए हुए हैं। उनकी संपूर्ण रचनाओं का अवलोकन करें या कुछ ख़ास रचनाओं पर नज़र डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि देश के संवेदनशील कवि आचार्य हाशमी साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए बेहतरीन जज़्बा और क़लम रखने वाले बेजोड़ कवि थे।
आचार्य हाशमी कई भाषाओं के विद्वान थे। उनकी विद्वता संस्कृत में भी झलकती थी। हिन्दी-उर्दू में एक समान प्रखरता थी। उनमें भाषा की बेहतरीन पकड़ थी। भाषाओं की समझ में और शब्दों के चयन ने उन्हें देश के शीर्षस्थ साहित्यकारों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया। शब्दों में जितनी मारक क्षमता थी, जिह्वा पर उतनी ही ओजस्विता थी। उनके ओजस्वी भाषणों, काव्य पाठों, ग़ज़लगोई एवं संचालन से मुशायरा और कवि सम्मेलन अपने शबाब पर पहुंच जाता था। उनके अंदर महफ़िल को जमाने और श्रोताओं एवं दर्शकों को बांधे रखने की एक अदभुत क्षमता थी।
अभी इस आलेख में हम बात कर रहे हैं- उनकी राष्ट्रीयता भाव, सांस्कृतिक चेतना और साम्प्रदायिक सौहार्द के उज्ज्वल पक्ष की। उनकी यह भावना बिहार स्टेट टेक्सटबुक पब्लिशिंग कॉरपोरेशन लि. पटना से कक्षा ग्यारवीं के मैथिली भाषा पाठ्य क्रम की पुस्तक ‘तिलकोर’ भाग एक में जिन रचना को शामिल किया गया है-वह रचना साम्प्रदायिक सौहार्द की एक मिसाल बनी हुई है। रचना का शीर्षक है-‘हे भाई’।
इस रचना में महाभारत के प्रकरण को सामने रखते हुए छात्रों से सौहार्द का आह्वाण किया गया है। छात्रों के मन में और समाज में फैल रहे विष को कविता की ख़ुराक़ देकर ख़त्म करने की कोशिश की गई है। और जात-पात एवं धर्म को लेकर मासूम मनोदशा में प्यार भरने की कोशिश की गई है। महाभारत के ‘पार्थ’, ‘राधेय’ एवं ‘पृथा’ के ज़रिए समाज को साम्प्रदायिक सौहार्द के रास्ते पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया है और यह बताया गया है कि साम्प्रदायिक सौहार्द देश की, समाज की और वक्Þत की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
टेक्स्ट बुक की इस किताब में फ़ज़लुर रहमान हाशमी का परिचय देते हुए कहा गया है कि फज़लुर रहमान हाशमी का जन्म 1940 ई. में पटना के बराह ग्राम में हुआ था। आगे लिखा गया है कि फज़लुर रहमान हाशमी मैथिली साहित्य के प्रथम मुस्लिम कवि हैं, जिन्होंने अपनी मातृभाषा के अनुराग को कविता के माध्यम से चित्रित किया है। पेशा से शिक्षक हाशमी जी मैथिली में कविता लिखकर मातृभाषा के भंडार को समृद्ध करते रहे हैं। उनकी कविता छोटी किंतु चित्रात्मक होती है। उन्होंने भाषा और भाव को बोझिल बनाने का प्रयास कभी नहीं किया। उर्दू शब्द का प्रयोग सहजता से इनकी कविताओं में शामिल रहती है।
इसी टेक्सटबुक में इनके काव्य संदर्भ की चर्चा इस प्रकार की गई है- कवि धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर अपनी मातृभाषा को मानते हैं। सबकी माता एक ही है- भारत माता- मिथिला माता। इसलिए कवि अपनी कविता हे भाई में कहते हैं- हे भाई मुझे मत मारो, हम दोनों भाई हैं। ख़ून किसी का भी बहेगा, चाहे अर्जुन हो या राधेय-कर्ण, पीड़ा तो माता कुन्ती को ही होगी। इसलिए हमारी माता मैथिली है। और हम सब विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग उन्हीं की संतान हैं। साम्प्रदायिक सदभाव पर हाशमी जी की सोच विलक्षण है।
अब हे भाई कविता का आनंद उठाएं-
हे भाई
हमरा जुनिम मारह…
तोँ हमरा
दोसर जाति
दोसर धर्म्मक बुझि रहल छह-
मुदा हम छी
तोरे भ्राता
अग्रज वा अवरज!
हमरा सभकेँ एके माता
नहि मारह
गैरि जानि क ऽ
संसारक दृष्टिमे
तोँ ‘पार्थ’
आओर
हम ‘राधेय’ बनल छी
मुदा ‘पृथा’ जानि रहल अछि
हृदय कानि रहल अछि
चुप अछि
मजबूरीसँ
बेबसीसँ
हेभाई
हमरा नहि मारह…। ’